Friday, July 27, 2012

दो वीरांगनाओं को नमन


वह कैप्टन लछमी सहगल थीं
कानपुर में रहती थीं
कई बार उनसे मिला
हर बार उनको गौर से निहारता
मन में सवाल होता कैसे इतनी सुन्दर लड़की फौजी बनी
इस कोमलांगी को देखकर क्या सोचते रहे होंगे नेताजी सुभाष
एक बार मैंने यह सवाल मानवती आर्या से पूछा
वह ठहाका मारकर हंसाने लगी, बोली,
यह सवाल तो मेरे दिमाग में आया ही नहीं
अन्यथा नेताजी से पूछती.
यह सवाल एक बार सहगल से पूछ लिया.
उन्होंने सवाल किया, वाकई मैं खूबसूरत हूँ?
सुभाष बाबू ने तो कभी नहीं बताया.
वह तो वीरांगना कहते थे.
उनको तो मेरे बाजुओं में हाथी का बल दिखता था.
वह तो सवा लाख अंग्रेजों से मुझे अकेले लड़ाना चाहते थे.
मैंने एक दिन मानवती आर्या से पूछा,
जवानी में तो आप राजकुमारी लगती रही होंगी
आपने कोमल बिस्तर के रंगीन सपनों की दुनिया छोड़ फौजी बनने की क्यों ठानी?
उन्होंने सवाल किया, आजादी से रंगीन सपना रोमांस का होता है क्या?
तो मेरा दो वीरांगनाओं को नमन
आज कैप्टन लछमी सहगल नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के पास चली गईं
मानवती आर्या ने भी अपना सामान बाँध रखा है.
कलम उनकी जय बोल कलम
उनको "जय" बोल.
-रोशन प्रेमयोगी

Thursday, July 12, 2012

अकेले मैं बैठता हूँ तो सिसकता हूँ

इस सावन में
फिर देखने को नहीं मिले झूले
गीली मट्टी में कूदना
नहर के पानी में डुबकी लगाना
भैंस के साथ खेत में जाना
धान के पौधे रोपना
चिड़ियों से बाते करना
ये बचपन की हकीकत है
अब आफिस और घर के बीच रिक्शावान की तरह आता-जाता हूँ
रोज नहाता हूँ लेकिन मन नहीं भीगता
रोज छत पर जाता हूँ लेकिन चिड़िया नहीं मिलतीं
खेत दिखाते हैं लेकिन उनमे दौड़ लगाने में हिचकता हूँ
अकेले मैं बैठता हूँ तो सिसकता हूँ
-रोशन प्रेमयोगी