Saturday, May 8, 2010

''लोग उसे माँ कहते हैं''



कसकर बांधे रहती है परिवार को आंचल से
टूटने देती नहीं रिश्तों की डोर
धूप होती है तो बन जाती है घना बादल
शीत पड़ती है तो सुलगती है अंगीठी की तरह
क्रोध भी आये तो लगे है वो प्यार की मूरत
प्यार से लोग उसे माँ-माँ कहते हैं
-रोशन प्रेमयोगी

3 comments:

  1. wakai. meri maa bhi bahut achchi hai, bilkul aisi hi.

    ReplyDelete
  2. माँ की महिमा न्यारी है सुन्दर कविता।

    ReplyDelete