Thursday, July 28, 2011

अकेले मैं बैठता हूँ तो सिसकता हूँ

इस सावन में


फिर देखने को नहीं मिले झूले


गीली मट्टी में कूदना


नहर के पानी में डुबकी लगाना


भैंस के साथ खेत में जाना


धान के पौधे रोपना


चिड़ियों से बाते करना


ये बचपन की हकीकत है


अब आफिस और घर के बीच रिक्शावान की तरह आता-जाता हूँ


रोज नहाता हूँ लेकिन मन नहीं भीगता


रोज छत पर जाता हूँ लेकिन चिड़िया नहीं मिलतीं


खेत दिखाते हैं लेकिन उनमे दौड़ लगाने में हिचकता हूँ


अकेले मैं बैठता हूँ तो सिसकता हूँ


-रोशन प्रेमयोगी

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