Thursday, July 12, 2012

अकेले मैं बैठता हूँ तो सिसकता हूँ

इस सावन में
फिर देखने को नहीं मिले झूले
गीली मट्टी में कूदना
नहर के पानी में डुबकी लगाना
भैंस के साथ खेत में जाना
धान के पौधे रोपना
चिड़ियों से बाते करना
ये बचपन की हकीकत है
अब आफिस और घर के बीच रिक्शावान की तरह आता-जाता हूँ
रोज नहाता हूँ लेकिन मन नहीं भीगता
रोज छत पर जाता हूँ लेकिन चिड़िया नहीं मिलतीं
खेत दिखाते हैं लेकिन उनमे दौड़ लगाने में हिचकता हूँ
अकेले मैं बैठता हूँ तो सिसकता हूँ
-रोशन प्रेमयोगी

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