Thursday, December 24, 2009
शान्ति के लिए कोई डिस्टर्ब करने वाला चाहिए
तुम्हारे जाने से घर बहुत सूना है
सोचता था कुछ दिन तुम नही रहोगे
तो घर में उथल-पुथल नही रहेगी
मैं कुछ खास लिख सकूंगा
लेकिन ७ दिनों से कुछ न लिख सका
तुम्हारे जो प्लास्टिक के
हाथी, घोडे, हिरन, जिराफ, बकरी, कछुए
मेरी परेशानी का कारण बनते थे
रात में बेड पर चुभते थे
वह सब औंधे मुंह पड़े हैं
कुछ मेरे बेड, मेज और फ्रिज के ऊपर पड़े हैं
ढेर सारे अलमारी में बहुत से आड़े-तिरछे पड़े हैं
वह सब मुझे सोने नही देते
जगाता हूँ उन्हें बार-बार इसलिए कि वे उदास न लगे
वे कभी-कभी भूखे लगते हैं प्यासे भी
मैं चाहता हूँ उन्हें नज़रंदाज करके ख़ुद खा लूँ
खाता हूँ तो पेट नही भरता
सोता हूँ तो नींद नहीं आती
लिखने-पढ़ने बैठता हूँ तो मन नहीं लगता
दिन भर ऑफिस में रहने के बाद घर आता हूँ तो घर उदास लगता है
तुम्हारी याद आती है
काश तुम होते
ये जानवर खुशहाल लगते
तुम इनके साथ मिलकर मुझे डिस्टर्ब करते
तन परेशान होता लेकिन मन उदास न होता
अब समझ गया हूँ एकांत कि अर्थ
अकेला होकर एकांत नही मिलाता
एकांत के लिए समाज चाहिए
शान्ति के लिए कोई डिस्टर्ब करने वाला चाहिए
(अपने बेटे धरातल को याद करते हुए)
-रोशन प्रेमयोगी
मातृभूमि के लिए आप भी कुछ कीजिये
जितनी बार तुलसी ने याद किया होगा राम को
उससे अधिक बार मैंने तुमको याद किया है
तुम्हारे भरोसे आज़ादी की ५१वी जएंती पर
सुभाष चंद्र बोस के परिवर्तन चौक पर
मैंने ताल ठोंक कर कहा था
मैं आमपंथी हूँ
आज भी मेरी घोषणा पर
लोग हंसते हैं
उन्हें लगता है
दुनिया में दो ही विचारधाराएँ हैं
दछिन पंथ और वाम पंथ
जो हंसते हैं
उन्हें लगता है,
लोहिया विचारधारा नहीं थे
दीन दयाल उपाध्याय नेता नहीं थे
ओशो दार्शनिक नहीं थे
अयोध्या, काशी और चित्रकूट में लोग ईश्वर को तलाशते हैं
जबकि मैंने तुमको पाया है
तुम्हारे राम
महात्मा गाँधी के राम से बड़े थे
तुम्हारी भारतमाता
वीर सावरकर के हिंदुत्व से ज्यादा पूज्यनीय हैं
तुम्हारा धर्म
महात्मा बुध के बाद का सन्मार्ग है
तुम्हारी राजनीति
कांग्रेस के आगे का राजपथ है
जब कभी मस्जिद की अजान सुनकर
कोई हिंदू सर झुकाता है
तो वह तुम्हारा समाजवादी लगता है
जब अयोध्या के हनुमान मन्दिर में
कोई मुसलमान घंटा बजाता है
तो वह तुम्हारा रामायण मेला लगता है
मेरे लोहिया,
२१वी सदी की राजनीति से तुम्हारा नाम गायब है
लेकिन बहुत दुखी नहीं हूँ मैं
क्योंकि महात्मा गाँधी, आंबेडकर, जयप्रकाश नारायण और पेरियार भी नहीं हैं सीन में
१०० साल पहले महात्मा गाँधी ने अछूत को गले लगाया था
हजारों लोगों की आँखों में आंसू आ गए थे
लांखो लोग भड़क गए थे
१०० दिन पहले राहुल गाँधी एक दलित के घर सो गए
अखबार रंग गए
टेलीविज़न चिल्लाने लगा
लेकिन, न किसी की आँखों में आंसू आए
न किसी की भृकुटी तनी।
अरे नहीं
सर्द नहीं हुआ है भारतियों का खून
प्यार भी कम नहीं हुआ है वफादारी की तरह
केवल भरोसा उठ गया है राजनीति पर से
मेरे लोहिया,
लाखों बच्चे २००९ में भी एपीजे अब्दुल कलाम को राष्ट्रपति मानते हैं
करोड़ों युवा ऐ आर रहमान के साथ वंदे मातरम गीत गाते हैं
आज सुबह जब देख रहा था
अपने प्रिय राफेल नडाल को टेनिस में हारते हुए
जयपुर से एक मित्र शांतनु शर्मा का एसएम्एस आया-
चंद्र शेखर आजाद, महात्मा गाँधी और सुभाष आदि ने
अपनी कुर्बानी देकर हमारी मातृभूमि को आजाद कराया
सो, वंदे मातरम बोलने से पहले सोचिये
हमने क्या किया है मातृभूमि के लिए
आज़ादी की ६३वी जएंती पर जरूर संकल्प लीजिये
मातृभूमि के लिए आप भी कुछ कीजिये
कैसा अजीब है सुबह का यह समय
सारा देश आज़ादी की जश्न मना रहा है
मनमोहन सिंह लालकिला से भाषण दे रहे हैं
उनकी पार्टी के लोगों के अलावा मुकेश अम्बानी ताली बजा रहे हैं
बच्चे दिमागी बुखार से मर रहे हैं
बड़े विदेशी फ्लू से डर रहे हैं
थाली से दाल गायब है
धान के खेत पानी के लिए तरस रहे हैं
आस्ट्रेलिया में भारतीय छात्र मारे जा रहे हैं
चाइना के चिन्तक
भारत को टुकडो में बांटने का मंसूबा बाँध रहे हैं
और
मैं भावुक मन से १५ अगस्त ०९ के दिन
तुमको याद कर रहा हूँ
-रोशन प्रेमयोगी
Tuesday, December 15, 2009
एक और क्रांतिकारी
एक और क्रांतिकारी
दो दिन पहले हुई कारन शिशिर दलाल से पहली मुलाक़ात
लगा १९९४ से जनता हूँ
जब मैंने क्रांतिकारी उपन्यास लिखना शुरू किया था
मुंबई के लखपति शिशिर दलाल का
सॉफ्टवेयर इंजिनिएर बेटा जो अगस्त तक
एक बड़ी कंपनी में निदेशक था
वेतन लाखों में था
अब वह लखनऊ के गाँव कुनौरा, बक्शी का तालाब के भारतीय ग्रामीण विद्यालय
में बच्चो और अध्यापको को
कंप्युटर पढ़ा रहा है
दो महीने से
करन खुश हैं सुविधावो की दुनिया छोडकर
उन्हें गरीब बच्चो का साथ भा रहा है
वह क्रांति कर रहे हैं
अमेरिका से करन ने बीई की डिग्री ली है
मुंबई विवि से एलएलबी किया है
पहले उनके पिता शिशिर और माँ अंगना दलाल
उनसे नाराज थे
अब दोस्तों को भी लगता है वह देश की तकदीर बदलने में लगे है
मेरे लिए तो करन दोस्त से पहले क्रन्तिकारी हैं
मेरी भावनाएं उनके साथ है
-रोशन प्रेमयोगी