जबसे दिल्ली में लड़कियों का आन्दोलन चल रहा है. मैं जुबान बंद करके घर-ऑफिस के बीच सीमित था, आज शारदा गुप्ता ने पूछा, अपने कुछ नहीं लिखा आन्दोलन पर?
तो कहना चाहता हूँ कि बार बार मुझे कुछ साल पहले हंस में छपी मेरी कहानी "तीसरी बेटी" याद आ रही है. भ्रूण हत्या बलात्कार से बड़ा मुद्दा है, गली गली बेटियों के कत्लगाह हैं, अल्ट्रा साउंड केंद्र पेट में बेटियों की पहचान करते हैं और अस्पतालों में बेटियाँ मार दी जाती हैं पेट में ही.
"तीसरी बेटी" कहानी लिखने के बाद कई रात मैं सो नहीं सका था, मैं उन कुछ महिलाओं को जानता हूँ जो कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ लड़ रही हैं, खुद मैं भी कई साल से. मेरा सवाल सरकार, कोर्ट, क़ानून, महिलाओं, आंदोलनकारियो, संगठनों सबसे है,
"जब महिला के पेट में बेटी सेफ नहीं तो समाज में कैसे होगी?" मेरा यह सवाल खुद से भी है, लेकिन उत्तर मेरे पास नहीं.
-रोशन प्रेमयोगी
Sunday, December 23, 2012
Tuesday, November 13, 2012
काश, पटाखों के साथ मंहगाई जल जाए
25 रुपये किलो आलू यानी दूना दाम
10 रुपये में मिर्चा 100 ग्राम
मोमबत्ती 210 रुपये किलो
दाल 90 रुपये
सरसों का तेल 110 में
इस दिवाली दोस्तों, मैंने बच्चों को कपडे नहीं दिलाये
500 ग्राम आफिस से मिली, 500 ग्राम बाज़ार से खरीदी
पत्नी जिद कराती रहीं लेकिन
सजावट के लिए झालर नहीं आई
दोस्तों इस दीवाली दीप जलाते समय लगा
दिल भी जल रहा है.
रोटी, दाल, दूध और सब्जी, बच्चों की फीस
वेतन तो ऐसे उडता है जैसे कलाई से इत्र
प्रधानमंत्री मनमोहन अपनी पीठ लाख ठोंकें
1999 में 1500 वेतन पाता था, ज्यादा खुश था
2012 में 19000 महीने के अंत तक
गूलर का फूल हो जाता है
हे सरकार, तुम्हारा सर्वनाश हो
हमारे दिल की आह तुमको लगे
नेताओं तुम्हारे हाथ में लोहे की जंजीरे हो
विश्वबैंक के इशारों पर चलने वाले
तुमको अंत समय कंधे न मिले
सोचता हूँ,
विधवा, निरीह, विकलांग कैसे पीते होंगे पसावन दाल की जगह
गरीबो की रोटी कैसे पकती होगी
इस मनमोहन युग में
-रोशन प्रेमयोगी
Monday, October 22, 2012
उसके सीने से लगने को मन करता है
मेरे पीछे कौर लेकर दौड़ती थी, बेटा खा ले भूखे बच्चो को डायन पकड़ ले जाती है. सोकर उठता तो बालों से ठन्डे तेल की खुशबु आती, सुबह नहाने से पहले उबटन लगाना वह कभी न भूलती, स्कूल जाता तो देसी घी के लड्डू रस्ते भर बसते से खुशबु विखेरते. नौकरी के लिए घर क्या छुटा, माँ का प्यार छूट गया. जाता हूँ जब पूजा घर में इस नवरात्र में, माँ का साया दिखता है, उसका चेहरा नहीं भूलता, उसके सीने से लगने को मन करता है, माँ से कब बच्चे का मन भरता है. -रोशन प्रेमयोगी
Sunday, September 30, 2012
मेरे अरमान हैं मैं चाँद बनूँ तारे बनूँ
हरेक डाल फूलों से लदे महके फिजा
खुलें पगडंडियों पर माल, गुलज़ार हों चौपाल भी
बड़ा हो आसमान गरीबों का भी देश में
...मेरे अरमान हैं मैं बिजली बनूँ बाँध बनूँ
खिले सूरजमुखी गेहूं की बालियाँ झूमें
सब्जियां पहुंचे आदिवासियों की भी रसोई में
बुंदेलखंड को पानी मिले ओडिशा को अन्न
मेरे अरमान हैं खेतों में गिरुं बीज बनूँ
नहीं सुनतीं सरकारें अंग्रेज हैं आफिसों के बाबू
बहुत मजबूर है यह देश दंश सहते हुए
न्याय पाने को यहाँ बिकते हैं खेत, आबरू भी
मेरे अरमान हैं पञ्च बनूँ परमेश्वर बनूँ
निकलो साथियों आओ जला दें उम्मीदों की लौ
तुम सूरज बनो सुखा दो दुखों का सागर
थोड़ी रोशनी हो संसद के पिछवाड़े भी
मेरे अरमान हैं मैं चाँद बनूँ तारे बनूँ.
(मेरे क्योंकि मैं लोहिया हूँ उपन्यास का अंश)
-रोशन प्रेमयोगी
हरेक डाल फूलों से लदे महके फिजा
खुलें पगडंडियों पर माल, गुलज़ार हों चौपाल भी
बड़ा हो आसमान गरीबों का भी देश में
...मेरे अरमान हैं मैं बिजली बनूँ बाँध बनूँ
खिले सूरजमुखी गेहूं की बालियाँ झूमें
सब्जियां पहुंचे आदिवासियों की भी रसोई में
बुंदेलखंड को पानी मिले ओडिशा को अन्न
मेरे अरमान हैं खेतों में गिरुं बीज बनूँ
नहीं सुनतीं सरकारें अंग्रेज हैं आफिसों के बाबू
बहुत मजबूर है यह देश दंश सहते हुए
न्याय पाने को यहाँ बिकते हैं खेत, आबरू भी
मेरे अरमान हैं पञ्च बनूँ परमेश्वर बनूँ
निकलो साथियों आओ जला दें उम्मीदों की लौ
तुम सूरज बनो सुखा दो दुखों का सागर
थोड़ी रोशनी हो संसद के पिछवाड़े भी
मेरे अरमान हैं मैं चाँद बनूँ तारे बनूँ.
(मेरे क्योंकि मैं लोहिया हूँ उपन्यास का अंश)
-रोशन प्रेमयोगी
Saturday, September 15, 2012
शारदा बहुत गुस्से में है
विदेशी कंपनियों के साथ ही वह प्रधानमंत्री को भी सबक सिखाना चाहती है. वह सोच रही की एफ़डीआइ से देश का बहुत नुक्सान होगा. वह मुझसे भी नाराज है कि मैं कुछ कर क्यों नहीं रहा. मैं भी नाराज हूँ सरकार से, लेकिन मैं चुप हूँ, देश जल रहा है मंहगाई कि आग में. मैं भी झुलस रहा हूँ लेकिन मैं चुप हूँ. सिर्फ शारदा का गुस्सा देख रहा हूँ. शारदा कि तरह लाखों भारतीय नाराज है. मैं सिर्फ उनकी नाराजगी को जिन्दा रखना चाहता हूँ. मैं नहीं चाहता कि नौजवान घरों से निकलकर उपद्रव करें, मैं चाहता हूँ यह गुस्सा ज्वालामुखी बने. आंधी बने. इसीलिए मैं हवा तेज करना चाहता हूँ. तो शारदा अपने घर कि खिड़कियाँ खोल दो, ताकि तुम्हारे मन कि आग ज्वालामुखी बने, तुम दुआ भी करो, लाखों लाखों नौजवानों के मन की आग धधकती रहे. देखना एक दिन उस आग में तपकर यह देश फिर सोना बनेगा.
-रोशन प्रेमयोगी
विदेशी कंपनियों के साथ ही वह प्रधानमंत्री को भी सबक सिखाना चाहती है. वह सोच रही की एफ़डीआइ से देश का बहुत नुक्सान होगा. वह मुझसे भी नाराज है कि मैं कुछ कर क्यों नहीं रहा. मैं भी नाराज हूँ सरकार से, लेकिन मैं चुप हूँ, देश जल रहा है मंहगाई कि आग में. मैं भी झुलस रहा हूँ लेकिन मैं चुप हूँ. सिर्फ शारदा का गुस्सा देख रहा हूँ. शारदा कि तरह लाखों भारतीय नाराज है. मैं सिर्फ उनकी नाराजगी को जिन्दा रखना चाहता हूँ. मैं नहीं चाहता कि नौजवान घरों से निकलकर उपद्रव करें, मैं चाहता हूँ यह गुस्सा ज्वालामुखी बने. आंधी बने. इसीलिए मैं हवा तेज करना चाहता हूँ. तो शारदा अपने घर कि खिड़कियाँ खोल दो, ताकि तुम्हारे मन कि आग ज्वालामुखी बने, तुम दुआ भी करो, लाखों लाखों नौजवानों के मन की आग धधकती रहे. देखना एक दिन उस आग में तपकर यह देश फिर सोना बनेगा.
-रोशन प्रेमयोगी
Friday, August 24, 2012
'क्योंकि मैं लोहिया हूँ'
"मैंने महात्मा गाँधी के महान सपनों का हश्र देख लिया था. इसलिए मेरा
दृष्टिकोण साफ़ था. आज भी मैं यही कहता हूँ, "सोने जैसे विचारों से भगवान्
बुद्ध की मूर्ति तो बनाई जा सकती है, बुद्ध को जन जन तक नहीं पहुँचाया जा
सकता....
"मैंने महात्मा गाँधी के महान सपनों का हश्र देख लिया था. इसलिए मेरा
दृष्टिकोण साफ़ था. आज भी मैं यही कहता हूँ, "सोने जैसे विचारों से भगवान्
बुद्ध की मूर्ति तो बनाई जा सकती है, बुद्ध को जन जन तक नहीं पहुँचाया जा
सकता....
बुद्धत्व को आम आदमी तक पहुचाने के लिए किसी बौद्ध को लंगोट बांधकर
अखाड़े में कूदना होगा. याद रखो, जिस दिन यहाँ के सबसे भ्रष्ट अधिकारी को
हज़रत गंज चौराहे पर उठाकर पटक दोगे, उसके अगले दिन देश के कई हिस्सों
में कई भ्रष्ट अधिकारीयों पर जूते पड़ेंगे."
मेरे जल्द प्रकाशित होने वाले उपन्यास 'क्योंकि मैं लोहिया हूँ' का अंश
-रोशन प्रेमयोगी
अखाड़े में कूदना होगा. याद रखो, जिस दिन यहाँ के सबसे भ्रष्ट अधिकारी को
हज़रत गंज चौराहे पर उठाकर पटक दोगे, उसके अगले दिन देश के कई हिस्सों
में कई भ्रष्ट अधिकारीयों पर जूते पड़ेंगे."
मेरे जल्द प्रकाशित होने वाले उपन्यास 'क्योंकि मैं लोहिया हूँ' का अंश
-रोशन प्रेमयोगी
Friday, July 27, 2012
दो वीरांगनाओं को नमन
वह कैप्टन लछमी सहगल थीं
कानपुर में रहती थीं
कई बार उनसे मिला
हर बार उनको गौर से निहारता
मन में सवाल होता कैसे इतनी सुन्दर लड़की फौजी बनी
इस कोमलांगी को देखकर क्या सोचते रहे होंगे नेताजी सुभाष
एक बार मैंने यह सवाल मानवती आर्या से पूछा
वह ठहाका मारकर हंसाने लगी, बोली,
यह सवाल तो मेरे दिमाग में आया ही नहीं
अन्यथा नेताजी से पूछती.
यह सवाल एक बार सहगल से पूछ लिया.
उन्होंने सवाल किया, वाकई मैं खूबसूरत हूँ?
सुभाष बाबू ने तो कभी नहीं बताया.
वह तो वीरांगना कहते थे.
उनको तो मेरे बाजुओं में हाथी का बल दिखता था.
वह तो सवा लाख अंग्रेजों से मुझे अकेले लड़ाना चाहते थे.
मैंने एक दिन मानवती आर्या से पूछा,
जवानी में तो आप राजकुमारी लगती रही होंगी
आपने कोमल बिस्तर के रंगीन सपनों की दुनिया छोड़ फौजी बनने की क्यों ठानी?
उन्होंने सवाल किया, आजादी से रंगीन सपना रोमांस का होता है क्या?
तो मेरा दो वीरांगनाओं को नमन
आज कैप्टन लछमी सहगल नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के पास चली गईं
मानवती आर्या ने भी अपना सामान बाँध रखा है.
कलम उनकी जय बोल कलम
उनको "जय" बोल.
-रोशन प्रेमयोगी
Thursday, July 12, 2012
अकेले मैं बैठता हूँ तो सिसकता हूँ
इस सावन में
फिर देखने को नहीं मिले झूले
गीली मट्टी में कूदना
नहर के पानी में डुबकी लगाना
भैंस के साथ खेत में जाना
धान के पौधे रोपना
चिड़ियों से बाते करना
ये बचपन की हकीकत है
अब आफिस और घर के बीच रिक्शावान की तरह आता-जाता हूँ
रोज नहाता हूँ लेकिन मन नहीं भीगता
रोज छत पर जाता हूँ लेकिन चिड़िया नहीं मिलतीं
खेत दिखाते हैं लेकिन उनमे दौड़ लगाने में हिचकता हूँ
अकेले मैं बैठता हूँ तो सिसकता हूँ
-रोशन प्रेमयोगी
इस सावन में
फिर देखने को नहीं मिले झूले
गीली मट्टी में कूदना
नहर के पानी में डुबकी लगाना
भैंस के साथ खेत में जाना
धान के पौधे रोपना
चिड़ियों से बाते करना
ये बचपन की हकीकत है
अब आफिस और घर के बीच रिक्शावान की तरह आता-जाता हूँ
रोज नहाता हूँ लेकिन मन नहीं भीगता
रोज छत पर जाता हूँ लेकिन चिड़िया नहीं मिलतीं
खेत दिखाते हैं लेकिन उनमे दौड़ लगाने में हिचकता हूँ
अकेले मैं बैठता हूँ तो सिसकता हूँ
-रोशन प्रेमयोगी
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