Sunday, September 8, 2013

हे दंगा कराने वाले धर्म, तुम्हारा सर्वनाश हो

चुरकी-दाढ़ी-खतना-कड़ा का अर्थ न जानने वाले बच्चों को भी तुम मरवा देते हो. अपने रूई-सूत से मतलब रखने वाले गरीबों पर तुम कहर ढाते हो. तुमने ८४ में हजारों सिखों को मरवाया तुमने ईराक-इरान को लड़वाया तुम गोधरा काण्ड कराते हो तुम मुंबई के अमन में आग लगाते हो तुमने अयोध्या से तुलसीदास को भगाया तुमने वाराणसी में कबीर और नजीर बनारसी को नहीं रहने दिया तुम हर साल लाखों बच्चों से दुनिया में पिता छीन लेते हो तुम तिब्बतियों को आत्महत्या के लिए प्रेरित करते हो तुमने कश्मीर से पंडितों के परिवारों को खदेड़ा तुमने शिव के काशी में किया बखेड़ा तुमने बोधगया में बम दगावाया तुमने गणेश शंकर विद्यार्थी को मरवाया तुमने भारत का विभाजन कराया तुमने एंग्लो इंडियन का सर्वनाश कराया तुम हत्यारे हो तुम अपराधी हो तुम पापी हो दुनिया में अमन के लिए तुम्हारा सर्वनाश हो. -रोशन प्रेमयोगी

Monday, June 10, 2013

सब करना लेकिन आत्महत्या न करना



आज एक लड़की ने मुझे फोन किया. मेरे लेखन की तारीफ की. कुछ देर बाद फिर फोन आया. उसने बताया कि वह एक लडके से बहुत प्यार करती है. एक साल से लडके ने दूरी बनानी शुरू कर दी. उसने जोर दिया तो लडके के माता-पिता उसे देखने आये और नापसंद कर दिया. अब जिंदगी बेकाम लगाती है. आत्महत्या करना चाहती हूँ. मैंने लडके को फोन करके पूछा, कि जिसे तुम इतना प्यार करते थे. वह खराब कैसे हो गई, लडके ने कोई साफ़ जवाब नहीं दिया. लड़की ने बताया न वह लडके को भूल पा रही, और न जीने की नयी राह दिख रही. मैंने उसकी हावीज पूछी, पढाई में उसने बीए और एक प्रोफेशनल कोर्स किया है. मैंने उससे पूछा, इश्वर को मानती हो? उसने हाँ कहा. मैंने कहा, हो सकता है इश्वर ने तुम्हारी जोड़ी किसी और के साथ बनाई हो, तो उसका इंतजार करो, जिसने तुमको ठुकरा दिया, उसकी यादों के पीछे भागन मूर्खता है. अपने करियर पर ध्यान दो, और हाँ, आत्महत्या सपने में भी न करना. वह मान गई. मुझे फिर फोन करने के वादे के साथ.

-रोशन प्रेमयोगी

Tuesday, May 7, 2013

उत्पीडन की कविता होती हैं बेटियाँ



बेटियां दिल होती हैं समाज की

ख़ुशी होती हैं पिता की

दोस्त होती हैं माँ की

आधार होती हैं परिवार की

बेटियां सुबह होती हैं

सृजन की पहली किरण होती हैं

नदी का किनारा होती हैं

भाई का सहारा होती हैं

बेटियां जंगल की लता होती हैं

रिश्तों का पता होती हैं बेटियां

बेटियां घर की रौनक होती हैं

फूलों की महक होती हैं बेटियां

बेटियां धरम होती हैं

मंदिर की घंटियाँ होती हैं बेटियां

बेटियां रास्ता होती हैं करियर की

पतझड़ की कलियाँ होती हैं बेटियाँ

बेटियां बारूद होती हैं प्रेम की

गाँव की नाक होती हैं बेटियां

बेटियां अन्याय की सविता होती हैं

उत्पीडन की कविता होती हैं बेटियाँ

हिरन की तरह जंगल में जीती-मारती हैं बेटियां

सूरज की पहली किरण की तरह पहाड़ों से डरती हैं बेटियाँ

बेटियाँ अनकहा राज होती हैं

अनसुना इतिहास होती हैं बेटियाँ

-रोशन प्रेमयोगी

Saturday, April 13, 2013

तुम्हारे न होने से क्या फर्क पड़ता है अम्बेडकर


सूरज उगने जैसा था तुम्हारा इस दुनिया से जाना

तुम्हारी २२ प्रतिज्ञाएँ हमें याद नहीं लेकिन

हम तुमको दिल में बसाते हैं आलिन्द की तरह

मेरे गाँव से दो कोस दूर नहर किनारे लगी है तुम्हारी मूर्ति

फिर भी लगता है दिन निकलने की तरह तुम्हारे विचारों का प्रकाश

मेरे चारों ओर मौजूद है

तुम्हारे विचार मुझमे मस्ती भरते हैं,

झकझोरते हैं और लड़ने की हिम्मत देते हैं.

यह सच है कि कुछ नेहरू और तमाम गाँधी तुम्हारी जोत के आगे

पहाड़ बनाकर खड़े हो जाते हैं बार-बार

लेकिन क्या फर्क पड़ता है, जब जोत से जोत जलती जा रही है

लगातार, हजारों-हजार

मजदूर तुम्हारा नाम याद करके दुःख भूल जाते हैं

दलित तुमको तब पुकारते हैं जब उनको पट्टा मिलता है

कुछ विस्वा जमीन का

और वह खुद को गर्व से किसान कहते हैं

तुम्हारी किताबें लेकर मेरे घर के सामने से

अब अक्सर निकलता है विद्यार्थियों का रेला

और अंगूठाटेक दादियाँ गाती हैं गीत तुम्हारी महिमा की

रमाबाई को तुम पंढरपुर के कालेराम का दर्शन नहीं करा सके

आज तुम्हारे दर्शन को लाखों लोग जुटते हैं

क्या यह कम है ?

नहीं लगे तुम्हारे नाम के आगे-पीछे राष्ट्रपति-प्रधानमन्त्री जैसे पद

क्या फर्क पड़ता है जब अरबों लोग मानते हैं तुम्हारा संविधान

कभी-कभी लगता है तुम अब इतिहास हो, देवता हो

कभी-कभी लगता है तुम नेता हो, अभिनेता हो, प्रणेता हो मेरे, मेरी पीढ़ी के

फिर लगता है तुम सिर्फ पति हो सविता कबीर के

फिर लगता है तुम बेटे हो महादेव अम्बेडकर के

सबसे ज्यादा लगता है कि तुम मसीहा हो गरीबों के

जिसके पास भी नहीं था स्वाभिमान इस दुनिया में

उसके तुम मुकुट हो सोने के हीरे के

जिन बच्चों का कोई नाम नहीं था,

जाति हो तुम उन करोड़ों नौनिहालों के

तुम्हारे न होने से क्या फर्क पड़ता है

जब गली-गली में खड़े हैं तुम्हारे विचारों के लैम्प-पोस्ट

हे भीमराव,

सच कहने की काबिलियत मुझमे तुमसे है

तुमसे मिला हार का भी जश्न मनाने का हुनर

तुमने मुझे पढ़ने के लिए मजबूर किया

तुमने लड़ने के लिए क़ानून का हथियार दिया

जब लाखों बच्चे भूखे हैं, मजदूर हैं, मजबूर हैं, अनपढ़ हैं

जब करोड़ों लोगों के सपने हैं धूल-धूसरित

रुकना नहीं चाहता मैं सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए

क्योंकि तुमने मुझे झंडा लेकर आगे चलने की जिम्मेदारी भी दिया


-रोशन प्रेमयोगी

Wednesday, April 3, 2013

लड़ने जाऊंगा घर की गौरैया पार्टी से



०२ अप्रैल २०१३ को गाँव गया

खाना खाने के लिए बरामदे में बैठा तो गौरैया आ गई

मां ने कहा थोडा सा चावल दे दो

मैंने दे दिया

... गौरैया ने तीन दाने चावल के खाए

फिर आ गई मेरे सामने

आँखों से आँखें मिलीं

निडर गौरैया मेरे और करीब आ गई

मां, इसे देखो डर नहीं रही मुझसे

एक टुकड़ा रोटी दे दो- मां ने कहा

मैंने रोटी का टुकड़ा दे दिया

उसने दो-तीन बार चोंच मारकर रोटी खाई

और फिर मेरे सामने

निडर, देखने लगी मेरी आँखों में

मां, यह फिर आ गई! -मैं चिल्लाया.

भाग रे, मोरे बिटवा को खाना न खाने देगी क्या? मां ने उसे डपटा

उसने मां की ओर देखा, तो

मैंने उसकी ओर देखा

वह पंख फड़फड़ाती हुई छत की सीढ़ी पर गई

मुझे ख़ुशी हुई

मैंने जोर से ताली बजाई,

"हे, डर के भाग गई गौरैया"

अचानक तेजी से वह लौटी

मेरी दाल की कटोरी पर बैठ

उसने चोंच में तीन बार भर-भर कर दाल पीया

अम्मा! मैं बच्चे की तरह जोर से चिल्लाया,

देखो मां, इसकी ढिठाई, मेरी दाल जूठी कर दी

रुक बुरलौनी, अभी बताती हूँ- मां दौड़ती हुई आई

गौरैया फुर्र से उड़ गई

हैंडपंप के ऊपर जा बैठी

घूरने लगी मुझे

कुछ देर बाद अपने साथी के साथ मेरे पास आई

लड़ने के लिए.

मुझे महात्मा गाँधी की अहिंसा याद आई

देखो, मैं तुम लोगों से लड़ना नहीं चाहता

दोस्ती करना है तो बोलो? मैंने कहा

वह दोनों खुश हो गए

उन्होंने जमीन से उठाकर चावल के दाने खाए

रोटी का टुकड़ा कुतरा

फिर मेरे गिलास से पानी पिया

और दोनों उड़ गए छत की ओर

दोपहर में पापा के कमरे में उनसे फिर मुलाकात हुई

खिड़की में उनका घोंसला है

बहन ने बताया उनके तीन बच्चे थे

दो जमीन पर गिरकर मर गए

एक पूरे घर में शोर मचाता है

मां ने बताया घर में गौरैया के तीन घोसले हैं

मुझे बहुत ख़ुशी हुई

मैंने पपीते के पेड़ों सा कहा,

जल्दी बड़े हो जाओ

ताकि बड़े बड़े फल लगे तुम्हारी डालियों में

घर के पीछे स्थित

आम की बाग़ में इस साल बौर नहीं आये हैं

तुम्हारा ही सहारा है

तुम्हारे फलों के लिए मैं लड़ने आऊंगा

घर की गौरैया पार्टी से

-रोशन प्रेमयोगीSee More

Wednesday, March 20, 2013

मेरे हमदम मेरे दोस्त लोहिया

मेरे हमदम मेरे दोस्त लोहिया,


हमेशा तुम मेरा मनोबल बढ़ाते हो

तब भी, जब सरकार का भेदभाव निराश करता है

तब भी, जब पुलिस झूठे मुकदमे लिखती है

और जब बच्चियां पेट में मार दी जातीं हैं

राजनीति से लोहिया को बहुत उम्मीद थी

जिसने उनके पिता की कौमी बाल्टी तोड़ दी

खुद लोहिया के सपने धराशाई कर दिए गए

राजनीति के गलियारों में जब लोहिया नाम का शोर होता है

तो मैं कानों पे हथेलियाँ रख लेता हूँ

जिन आंबेडकर को लोहिया अपना हमसफ़र मानते थे

उनको यूपी में राजनीति ने विरोधी बना दिया

जिस लखनऊ में एक लाख मजदूर-किसान

लोहिया के बुलाने पे जुटे थे,

उसमे अब लोहियावाद के जनाजे निकाले जाते हैं

मेरे जिले में लोहिया का नामोनिशान मिट गया

अरे जहाँ लोहिया का जन्म हुआ था

जिस रामायण मेले से

सांस्कृतिक क्रांति की उम्मीद की थी लोहिया ने

उसपर साम्यवाद का भूत सवार हो गया

जिस संसद में रोये थे लोहिया आदिवासियों के लिए

उस संसद में अब करोड़पतियों का बहुमत है

जब यह सब सोचकर थक जाता हूँ

तो लोहिया मेरा मनोबल बढ़ाते हैं

उनके आशावाद का कायल हो जाता हूँ तब

जब वह गरीबों के लिए हाथ फैलाते हैं,

विधानसभा के आगे खड़े होकर

उनकी आवाज़ में तब

मैं भी आवाज मिलाता हूँ

इस उम्मीद में

एक दिन लोकतंत्र में बराबरी आएगी

न्याय सबको मिलेगा

पेट सबका भरेगा

सब बच्चे स्कूल जायेंगे

मजदूर अपने घर के आसपास रोटी कमाएंगे

किसान बुंदेलखंड में भी फसल उगायेंगे

(डॉ राम मनोहर लोहिया को २३ मार्च पर याद करते हुए)

-रोशन प्रेमयोगी

Saturday, March 9, 2013

जिस दिन पहाड़ की दूबों को सब जगह बोऊँगा मैं

बंदरों की तरह उत्पात कर रहे हो रोज


क्यारियों में लगे मेरे फूलों को तोड़ देते हो

वाइरस की तरह घुस जाते हो अब गाँव में भी

गलियों में टंगे मेरे अमन के पोस्टर फाड़ देते हो

कैसे नफ़रत फैलायेंगे तुम्हारी साजिशों के साये

बताओ जिस दिन प्यार का आसमान तान दूंगा मैं

कैसे बच पाएंगे तुम्हारी रासायिनिक खादों से बने उसर-बंजर

बताओ जिस दिन पहाड़ की दूबों को सब जगह बोऊँगा मैं

-रोशन प्रेमयोगी

Friday, January 25, 2013

इस गणतंत्र पर मेरे देश

इस गणतंत्र पर मेरे देश,


महिलाओं को सम्मान देना

बच्चों को स्कूल भेजना

गरीबों को न्याय और रोटी देना

युवाओं को सब्र और संस्कार देना

सरकार को संवेदना देना

अफसरों को इंसान बनाना

नेताओं को सद्बुद्धि देना

किसान को खाद और पानी देना.



इस गणतंत्र पर मेरे देश,

फूलों को महकने देना

चिड़ियों को चहकने देना

घरों को रोशनी देना

अरबपतियों को दिल देना

बच्चियों का ब्याह रोकना

अपराधियों को सलीब देना

कंगालों को नसीब देना



इस गणतंत्र पर मेरे देश,

रचनाकारों को सम्मान देना

दलालों को अपमान देना

बहुमंजिली इमारतों को धूप देना

प्यासों को कूप देना

मुस्कराहटों को रंग देना

पुलिसिया आहटों को ढंग देना

प्रेम को झूले देना

ग्रामीणों को चूल्हे देना



इस गणतंत्र पर मेरे देश,

आँखों को काजल देना

पहाड़ों को बादल देना

वीर शहीदों को ठौर देना

देश की सीमाओं को शांति देना

भीड़ को क्रांति देना

-रोशन प्रेमयोगी

Thursday, January 3, 2013

सेल्यूलाइड की कठपुतलियाँ हैं हम सब



नाचते हैं मन करने पर

गाते हैं बाथरूम में

दिल्ली में युवाओं का प्रदर्शन

अन्ना हजारे का आन्दोलन

कश्मीर की धूप

वाराणसी के सांड का कोई भरोसा नहीं

हमारे आन्दोलन से सरकार नहीं हिलती

राजनेता नहीं कांपते

... समाज नहीं बदलता

मेरा नया साल उदास है

बीते साल राम मनोहर लोहिया से

उनके पसंदीदा नेता के बारे में पूछा,

उन्होंने राजीव गांधी का नाम लिया

आश्चर्य हुआ लेकिन संतोष भी

प. नेहरू की लुटिया डुबोने वाले लोहिया

राजीव गाँधी को दुलारते हैं बीते साल में

मोमबत्ती जलने वाले पीटे जाते हैं नए साल में

उन्ही कांग्रेसी नेताओं के हाथों से, बातों से

जिसके महात्मा गाँधी प्रणेता थे.

देश की बड़ी खबर है कैश सब्सिडी नए साल पर

भ्रूण ह्त्या, लुटे किसान, अन्न विहीन रसोईघर, पानी विहीन नहरे,

किसे बताऊँ मन दुखी है देश के हालात से

जब हर दिल में दर्द है

पर इस दर्द का क्या जब दर्द मोमबत्ती जलने तक दिखता है

एक हाथ जमीन जो मेरी है, के लिए

मेरे पिता सात साल से लड़ रहे हैं

बेटी पर अत्याचार हुआ तो मुन्नर काका कोर्ट नहीं

पुलिस में भी नहीं गए

बेटी को ससुराल भेज कर खुद मुंबई चले गए

मेरे पड़ोस के विलासपुरी राजगीर के पांच बच्चे

नहीं जाने को पाते स्कूल

कर्ज न चुका पाने पर बाराबंकी के मंशाराम ने

कर ली आत्महत्या...

हालात जस के तस

आज़ादी की रौनक फीकी

मन उदास तन बेचैन

गले में खराश

जुबान पर जिंदाबाद-मुर्दाबाद लेकर हम क्रांति करने निकले हैं

हम सेल्यूलाइड की कठपुतलियाँ हैं

-रोशन प्रेमयोगी

..आओ गले मिलें



रंग हैं प्यार में

इनकार में

स्वीकार में

रंग हैं फूलों में

नदियों में

वादियों में

रंग हैं दिनों में

रातों में

बातों में

सपनों में

अपनों में

रंग हैं रिश्तों में

फरिश्तों में

रंग हैं

बच्चों की मुठ्ठियों में

माँ की चिठ्ठियों में

प्रेमिका की गिट्टियों में

जन्मस्थान की मिट्टियों में

यह रंग तुममें है

तुम मुझे दो

मुझमें है

तुमको दूंगा

आओ गले मिलें

नए साल का स्वागत करें

-रोशन प्रेमयोगी