बंदरों की तरह उत्पात कर रहे हो रोज
क्यारियों में लगे मेरे फूलों को तोड़ देते हो
वाइरस की तरह घुस जाते हो अब गाँव में भी
गलियों में टंगे मेरे अमन के पोस्टर फाड़ देते हो
कैसे नफ़रत फैलायेंगे तुम्हारी साजिशों के साये
बताओ जिस दिन प्यार का आसमान तान दूंगा मैं
कैसे बच पाएंगे तुम्हारी रासायिनिक खादों से बने उसर-बंजर
बताओ जिस दिन पहाड़ की दूबों को सब जगह बोऊँगा मैं
-रोशन प्रेमयोगी
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