Sunday, December 23, 2012

बेटियां तो पेट में भी सेफ नहीं

जबसे दिल्ली में लड़कियों का आन्दोलन चल रहा है. मैं जुबान बंद करके घर-ऑफिस के बीच सीमित था, आज शारदा गुप्ता ने पूछा, अपने कुछ नहीं लिखा आन्दोलन पर?
तो कहना चाहता हूँ कि बार बार मुझे कुछ साल पहले हंस में छपी मेरी कहानी "तीसरी बेटी" याद आ रही है. भ्रूण हत्या बलात्कार से बड़ा मुद्दा है, गली गली बेटियों के कत्लगाह हैं, अल्ट्रा साउंड केंद्र पेट में बेटियों की पहचान करते हैं और अस्पतालों में बेटियाँ मार दी जाती हैं पेट में ही.
"तीसरी बेटी" कहानी लिखने के बाद कई रात मैं सो नहीं सका था, मैं उन कुछ महिलाओं को जानता हूँ जो कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ लड़ रही हैं, खुद मैं भी कई साल से. मेरा सवाल सरकार, कोर्ट, क़ानून, महिलाओं, आंदोलनकारियो, संगठनों सबसे है,
"जब महिला के पेट में बेटी सेफ नहीं तो समाज में कैसे होगी?" मेरा यह सवाल खुद से भी है, लेकिन उत्तर मेरे पास नहीं.
-रोशन प्रेमयोगी