Sunday, September 30, 2012

मेरे अरमान हैं मैं चाँद बनूँ तारे बनूँ




हरेक डाल फूलों से लदे महके फिजा

खुलें पगडंडियों पर माल, गुलज़ार हों चौपाल भी

बड़ा हो आसमान गरीबों का भी देश में

...मेरे अरमान हैं मैं बिजली बनूँ बाँध बनूँ

खिले सूरजमुखी गेहूं की बालियाँ झूमें

सब्जियां पहुंचे आदिवासियों की भी रसोई में

बुंदेलखंड को पानी मिले ओडिशा को अन्न

मेरे अरमान हैं खेतों में गिरुं बीज बनूँ

नहीं सुनतीं सरकारें अंग्रेज हैं आफिसों के बाबू

बहुत मजबूर है यह देश दंश सहते हुए

न्याय पाने को यहाँ बिकते हैं खेत, आबरू भी

मेरे अरमान हैं पञ्च बनूँ परमेश्वर बनूँ

निकलो साथियों आओ जला दें उम्मीदों की लौ

तुम सूरज बनो सुखा दो दुखों का सागर

थोड़ी रोशनी हो संसद के पिछवाड़े भी

मेरे अरमान हैं मैं चाँद बनूँ तारे बनूँ.

(मेरे क्योंकि मैं लोहिया हूँ उपन्यास का अंश)

-रोशन प्रेमयोगी

Saturday, September 15, 2012

शारदा बहुत गुस्से में है
विदेशी कंपनियों के साथ ही वह प्रधानमंत्री को भी सबक सिखाना चाहती है. वह सोच रही की एफ़डीआइ से देश का बहुत नुक्सान होगा. वह मुझसे भी नाराज है कि मैं कुछ कर क्यों नहीं रहा. मैं भी नाराज हूँ सरकार से, लेकिन मैं चुप हूँ, देश जल रहा है मंहगाई कि आग में. मैं भी झुलस रहा हूँ लेकिन मैं चुप हूँ. सिर्फ शारदा का गुस्सा देख रहा हूँ. शारदा कि तरह लाखों भारतीय नाराज है. मैं सिर्फ उनकी नाराजगी को जिन्दा रखना चाहता हूँ. मैं नहीं चाहता कि नौजवान घरों से निकलकर उपद्रव करें, मैं चाहता हूँ यह गुस्सा ज्वालामुखी बने. आंधी बने. इसीलिए मैं हवा तेज करना चाहता हूँ. तो शारदा अपने घर कि खिड़कियाँ खोल दो, ताकि तुम्हारे मन कि आग ज्वालामुखी बने, तुम दुआ भी करो, लाखों लाखों नौजवानों के मन की आग धधकती रहे. देखना एक दिन उस आग में तपकर यह देश फिर सोना बनेगा.
-रोशन प्रेमयोगी