बहुत याद आती है
आम की बाग़ओ गुलेल
चलानाजहाज जैसे पेड़ों पर डाल-डाल
टापनाकच्चा बम्बइया आम खाना
चिलबिल के फल बीनना
अपने बछड़े के पीछे डंडा लेकर
दौड़नाभैंस को नहर-तालाब के पानी में
नहलानाउसकी पूँछ पकडकर
तैरनारात में चोरी से नौटंकी नाच देखने जाना
सुबह पिताजी के थप्पड़
खानाबहुतयाद आता है मेरा
गाँवमाँ उलाहने देती
हैशहर से बहुत हो गया तुम्हे मोह ८ महीने हो गए तुम गाँव नहीं
आयेआंसू भर आते हैं आँखों
मेंनौकरी जरूरी
हैपत्रकारिता पेशे की मजबूरी है
कैसे बताऊँ दलदल में हैं
पांवऔरबहुत याद आता है गाँव
-रोशन प्रेमयोगी
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