Sunday, September 25, 2016

वे हिन्दी के लेखक हैं, बहुत नाराज हैं...

हिन्दी के सारे थके लोग कलम पकड़कर चिल्ला रहे हैं वे बहुत गुस्से में हैं वे सचमुच बहुत गुस्से में हैं उनके हाथ में तलवार दे दी जाए तो मार आएंगे हिमालय के उस पर जाकर तीतर-बटेर उन्हें हवाई जहाज दे दिए जाएं तो दाग आएंगे चांद और सूर्य पर गुमान के गोले उन्हें सांसद बना दिए जाए तो वे उखाड़ देंगे सरकार और संविधान के कील-पेंच पर उन्हें कोई कुछ नहीं दे रहा उन्हें कोई देख भी नहीं रहा उनको सुनने के लिए श्रोता भी नहीं हैं फिर भी वे चिल्ला रहे हैं माइक पर गूंज रही हैं उनकी आवाजें वे माइक पर चिल्लाते हुए कई-कई गिलास पानी पी जा रहे हैं। वे हिन्दी के लेखक हैं वे बहुत गुस्से में हैं हालांकि अभी तक मैं यह नहीं जान सका कि वे नाराज किससे हैं? पाठकों से? प्रकाशकों से? सरकार से? समाज से? या फिर हाशिए पर पहुंच जाने के लिए जिम्मेदार अपने आप से? -रोशन प्रेमयोगी

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