Saturday, October 2, 2010
आश्चर्य गाँधी बचे हुए थे
आज देखा सड़क पर
एक मरी हुई तितली
तितली कहीं नहीं थी
केवल रंग बिरंगे पंख बचे हुए थे
महात्मा गाँधी के विचारों की तरह
साईकिल, मोटरसाईकिल, कार और बसों से
लोग कुचलते हुए निकल रहे थे
आश्चर्य, रंग बिरंगे पंख फिर भी बचे हुए थे
महात्मा गाँधी के विचारों की तरह
-रोशन प्रेमयोगी
Tuesday, August 31, 2010
बहुत याद आती है आम की बाग़
आम की बाग़ओ गुलेल
चलानाजहाज जैसे पेड़ों पर डाल-डाल
टापनाकच्चा बम्बइया आम खाना
चिलबिल के फल बीनना
अपने बछड़े के पीछे डंडा लेकर
दौड़नाभैंस को नहर-तालाब के पानी में
नहलानाउसकी पूँछ पकडकर
तैरनारात में चोरी से नौटंकी नाच देखने जाना
सुबह पिताजी के थप्पड़
खानाबहुतयाद आता है मेरा
गाँवमाँ उलाहने देती
हैशहर से बहुत हो गया तुम्हे मोह ८ महीने हो गए तुम गाँव नहीं
आयेआंसू भर आते हैं आँखों
मेंनौकरी जरूरी
हैपत्रकारिता पेशे की मजबूरी है
कैसे बताऊँ दलदल में हैं
पांवऔरबहुत याद आता है गाँव
-रोशन प्रेमयोगी
Saturday, May 8, 2010
''लोग उसे माँ कहते हैं''
कसकर बांधे रहती है परिवार को आंचल से
टूटने देती नहीं रिश्तों की डोर
धूप होती है तो बन जाती है घना बादल
शीत पड़ती है तो सुलगती है अंगीठी की तरह
क्रोध भी आये तो लगे है वो प्यार की मूरत
प्यार से लोग उसे माँ-माँ कहते हैं
-रोशन प्रेमयोगी
Monday, April 26, 2010
भारत के बूढ़े होने की चिंता
देश भी सपने देखता है
देश के भी आँखें होती हैं
देश भी महत्वकांछाएं पालता है
देश में भी जीतने का जज्बा होता है
देश के भी सीने में दिल धड़कता है
देश भी खुश होने पर ठठाकर हँसता है
देश भी हारने पर दुखी होता है
यह सारे गुण और संवेदनाएं मुझे भारत में दिखती हैं
भारत एक नौजवान देश है
भारत के पास अपार प्रतिभाएं हैं
भारत एक मजबूत राष्ट्र है
भारत किसी हिमालय की तरह ऊँचा है
भारत किसी सागर की तरह गहरा है
भारत किसी भीम की तरह बलवान है
भारत किसी रावण की तरह बुद्धिमान है
भारत किसी महात्मा गाँधी की तरह सादगी पसंद है
भारत किसी राम मनोहर लोहिया की तरह अन्तोदय की सोचता है
भारत किसी तेंदुलकर की तरह महान है
भारत किसी विवेकानंद की तरह स्वप्नदर्शी है
लेकिन
भारत का नेतृत्व अतीत्जीवियों के हाथों में है
भारत लम्पट नेताओं को अपने कंधे से उतार नहीं पा रहा है
भारत संसद के इर्द-गिर्द फैली गन्दगी को साफ़ नहीं कर पा रहा है
सच और झूठ का घोल भांग की तरह पी रहा है राजनेता
चोरी करने पर वह जार-जार रोता है राष्ट्रभक्त होने का दावा करते हुए
इमानदारी दिखाने पर मूसक बन जाता है
मुझे कहना है भंग कर दो भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड को
इंडियन प्रिमिएर लीग को दे दो क्रिकेट की जिम्मेदारी
भंग कर दो राजनीतिक दलों को
एक बार लड़ने दो राजनितिक दलों के युवा संगठनों को चुनाव
फार्मेट करना जरूरी है नेतृत्व के कम्पूटर को
अन्न गोदामों में है लेकिन आम आदमी भूखा है
संसाधन अपार हैं
लेकिन लाखों युवा बेरोजगार हैं
शेयर बाज़ार के चढ़ने से क्या होता है मनमोहन सिंह जी
जब गर्भवती महिलाओं को नहीं मिल रही हरी सब्जी और
आयरन की गोली
बच्चों को नहीं मिल रहे खिलौने
और मुझे नहीं आ रही रात में नींद और दिन में चैन
सता रही है बिना जवान हुए
भारत के बूढ़े होने की चिंता
-रोशन प्रेमयोगी
Saturday, March 27, 2010
Monday, January 25, 2010
लोकतंत्र जाग रहा है
दादाजी की तरह
नेता जी आते थे सिर्फ यह कहने
इस निशान पर मुहर लगाना
मैंने बोलना शुरू किया
सवाल करता हूँ वोट मांगने वालों से
मेरे बाद की पीढ़ी हिसाब मांगेगी
एक-एक योजना का
अपने इनकम टैक्स का
देश जाग रहा है
युआ जाग रहा है
लोकतंत्र जाग रहा है
सोने वाले नेताओं'
तुम भी जाग जाओ
-रोशन प्रेमयोगी
Saturday, January 16, 2010
जब भी पाँव उतारोगे नाव से
उदास रातों में मै सपना बनकर आऊंगा
धूप में निकालोगे तो बादल बन जाऊंगा
तुम मुझे कैसे निकाल पाओगे यादों के सागर से
जब भी पाँव उतारोगे नाव से किनारे बांहे फैलाये नज़र आऊंगा
-रोशन प्रेमयोगी
बात से बात बन जाए
बात से बात बन जाए तो बात होती है
बात की क़द्र करते हो तो बातूनी न बनो
बात यदि अहमियत रखे तो बात होती है
-रोशन प्रेमयोगी
बड़ी खतरनाक है नई सुबह
रात में बहुत ठंढ थी
नींद नही आयी
सोचा था सुबह होने पर खूब नहाऊंगा और गरम खिचडी खाऊँगा
और आफिस जाऊंगा
नहा-खा कर ऑफिस पहुँचा तो कहा गया मंदी की चपेट में हो तुम
घर चला आया
अब तो दिन में भी सर्दी लग रही है
उम्मीद थी की पेट की आग गरमी देगी
पर अब तो बरफ लग रहा है पेट
देवदार लग रहे हैं हाथ
पत्थर लग रही है आँखे
पानी लग रहा है दिमाग
रोशन प्रेमयोगी
तब भी जवान था प्यार
तब भी जवान था प्यार
जब मैं जवान हूँ
तब भी युवा है प्यार
जब मैं बूढा हो जाऊँगा
तब भी जवान रहेगा प्यार
मानव स्वभाव
झुंझलाता हूँ'
आखिर क्यों नहीं मेरे साथ
बूढा हो जाता
यह प्यार
-रोशन प्रेमयोगी
इस गली में गुलाब हैं साहिब

थोड़े अंधेरे में

मेरी पलको तले था एक सपना
थोड़े अंधेरे में
उजाला तलाश रहा था सपने में
सुबह से ही नही थी बिजली
जब मै था उजाले के बेहद करीब
अचानक जल गया बल्ब
टूट गया सपना बुझ गया प्रकाश
कल जब शाम ढल रही थी
बहुत याद आयी तुम्हारी
अगर तुम होती घर में बल्ब न जलाता
खली पंखा चलता
बड़ा होता मेरा सपना
हासिल कर लेता मै प्रकाश
एक उमँग एक तरंग

मुझे पसंद है पीला रंग
पीली कनेर की तरह हो जो भीनी खुशबू वाला
जिसमे हो एक सपना एक प्यार एक मर्यादा
एक उमँग एक तरंग
मुझे पसंद है सपना को देखना
मुझे पसंद है सपना से प्यार करना
मुझे पसंद है कनेर का फूल देखना
मुझे पसंद है पीला रंग
अजीब बात यह है मैं कनेर सा पीला रंग खेलना चाहता हूँ
जिसमे भीनी खुशबू हो
जो बाजार में नही मिलाता
सो मैं सपना से खेलता हूँ रंग
फूलों को देख मन में भर लेता हूँ उमँग
होली मेरे लिए सपना है
होली मेरे लिए पीली कनेर है
होली मेरे लिए मन की उमँग है
होली मेरे लिए गीत है
जिसे केवल याद करता हूँ गाता नही
क्यों की मेरा सुर नहीं अच्छा है
वैसे भी मुझे केवल गुनगुनाना अच्छा लगता है
क्योंकी मई नही चाहता की लोग जान लें की
रोशन को येही गीत पसंद है
लोग यह जान लेंगे तो नज़र लगा देंगे
-रोशन प्रेमयोगी
भीगेगा तुम्हारा तन-मन

लेकिन कभी बरसात नहीं होती
सूखा पड़ गया है दिल की धरती पर
कुछ दोस्त कभी-कभी दिलासा देते हैं
कराएँगे क्लाउड सीडिंग
होगी झमाझम बारिश
भीगेगा तुम्हारा तन-मन
जिस दिन मिलता है दिलासा
दिन भर खुश रहता हूँ
रात को देखता हूँ ढेर सारे सपने
अगले दिन छाया रहता है खुमार
उसके अगले दिन खोलकर बैठता हूँ घर का दरवाज़ा
शाम हो जाती है कोई दोस्त नही आता
मैं अगले दिन निकल जाता हूँ बाज़ार
इस उम्मीद में कि कुछ दोस्त तो मिलेंगे ही
मिलते हैं, सॉरी बोलते हैं, व्यस्तता का बहाना बनाते हैं
अगले हफ्ते आने का वादा करते हैं
मैं खुश
लेकिन वे अगले हफ्ते भी नहीं आते
मैंने भी कल एक रास्ता निकाला है
जब बहुत भीगने का मन करता है तो
आधी रात में छत पर चला जाता हूँ
लेट जाता हूँ
सुबह महसूस करता हूँ
मेरी त्वचा चिपचिपा रही है
खुश होता हूँ
चलो बारिश न सही
ओश में तो भीग गया तन
एक दिन इसी तरह भीग जाएगा मन
-रोशन प्रेमयोगी
Friday, January 8, 2010
नयी उम्मीद करो ख़ुद से
मुझे कोई सुरीला साज़ बजाते पाओगे
मै आपको चाँद तोड़कर तो नही दे सकता
मै अपने हाथों से ईंट भी नही तोड़ सकता
मैं नदी की धारा नही मोड़ सकता
फ़िर भी मैं बहुत कुछ केर सकता हूँ
मैं आपको चाँद का सपना दिखा सकता हूँ
मैं आपके सपनों की परवरिश कर सकता हूँ
मैं बता सकता हूँ कल्पना में यथार्थ कितना है
यथार्थ में झूठ कितना है
मैं सिखा सकता हूँ अपने सुख को कैसे बांटो
मैं बता सकता हूँ अपने दुःख को कैसे एन्जॉय करो
लेकिन यह मत सोचो मेरे पास कोई जादुई छड़ी है
या फ़िर समय को कंट्रोल कराने वाली घड़ी है
मेरे पास सिर्फ़ रास्ते हैं
जो तुम्हारी मंजिल तक भी जाते हैं
मेरे पास सपने हैं
जो तुम्हारे दिल तक जाते हैं
मेरे पास एक आईना है
जिसमे देखकर अपना चेहरा
तुम गुनगुना सकते हो कोई प्रेम गीत
कोई भजन
कोई निर्गुण
जब तुम इनमे से कुछ गुनगुनाओगे
मुझे कोई सुरीला साज़ बजाते पाओगे
-रोशन प्रेमयोगी
मैं खुश नहीं हूँ
बहुत निराश लगाती है शाम
मनमोहन सिंह का प्रधानमंत्री बनना
मुझे जाने क्यों गाँधी, लोहिया का अपमान लगता है
गरीब की रोटी मंहगी हो गई
अमीर की रोटी सस्ती
कल जब गया बिग बाज़ार
१४० रुपये में मिला मुझे १० किलो आटा
आज पड़ोस की आटा चक्की पैर एक मजदूर को
मैंने १३.५० के हिसाब से ३ किलो आटा खरीदते देखा
आँखों में आंसू आ गए
१३००० कमाने वाले रोशन प्रेमयोगी वातानुकूलित बिग बाज़ार में
१४ रुपये किलो आटा खरीदते हैं
१०५ रुपये प्रतिदिन मजदूरी पाने वाले सुनील १३.५० में
मुकेश अम्बानी भी शायद रोटी खाते होंगे
वे भी अधिकतम १५-१६ रुपये किलो आटा खरीदते होंगे
उनके आते का दाम विगत १० सालों में लगभग वही है
मज़दूर-किसान के आते का दाम ५ रुपये से बढ़कर १४ तक पहुच गया
हे महात्मा गाँधी!
क्या यह भारतीय विकास का दर्शन देखकर तुम्हारी आंखों में आंसू नहीं हैं?
मेरे जिले में पैदा हुए डॉ राम मनोहर लोहिया तो रो रहे हैं
यह कैसा अन्तोदय है बाबा अम्बेडकर?
जब भारत आजाद हुआ था तो इस देश में साछरता दर लगभग २३ प्रतिशत थी
इस समय लगभग ६२ प्रतिशत है
यानि १ प्रतिशत सालाना भी नहीं बढ़ी
अनाज का दाम तो किसानो को मिल रहा है लेकिन
लाभ कमा रही हैं कम्पनियाँ
शुक्रिया मनमोहन सिंह जी
आपके राज़ में मज़दूर और अरबपति की रसोई में जाने वाले आटा का रेट लगभग बराबर है
लेकिन मैं दुखी हूँ प्रधानमंत्री जी
मैं खुश नहीं हूँ
मुंबई स्टाक एक्सचेंज के बढ़ते ग्राफ से
देश में ५ स्टार अस्पतालों के खुलने से
हवाई जहाज का किराया कम होने से
मैं बहुत दुखी हूँ
गाँधी की विचारधारा के मरने से
लोहिया का समाजवाद ढहने से
अम्बेडकर की नीतियों के मरने से
-रोशन प्रेमयोगी
भीगेगा तुम्हारा तन-मन
लेकिन कभी बरसात नहीं होती
सूखा पड़ गया है दिल की धरती पर
कुछ दोस्त कभी-कभी दिलासा देते हैं
कराएँगे क्लाउड सीडिंग
होगी झमाझम बारिश
भीगेगा तुम्हारा तन-मन
जिस दिन मिलता है दिलासा
दिन भर खुश रहता हूँ
रात को देखता हूँ ढेर सारे सपने
अगले दिन छाया रहता है खुमार
उसके अगले दिन खोलकर बैठता हूँ घर का दरवाज़ा
शाम हो जाती है कोई दोस्त नही आता
मैं अगले दिन निकल जाता हूँ बाज़ार
इस उम्मीद में कि कुछ दोस्त तो मिलेंगे ही
मिलते हैं, सॉरी बोलते हैं, व्यस्तता का बहाना बनाते हैं
अगले हफ्ते आने का वादा करते हैं
मैं खुश
लेकिन वे अगले हफ्ते भी नहीं आते
मैंने भी कल एक रास्ता निकाला है
जब बहुत भीगने का मन करता है तो
आधी रात में छत पर चला जाता हूँ
लेट जाता हूँ
सुबह महसूस करता हूँ
मेरी त्वचा चिपचिपा रही है
खुश होता हूँ
चलो बारिश न सही
ओश में तो भीग गया तन
एक दिन इसी तरह भीग जाएगा मन
-रोशन प्रेमयोगी